सभी मित्रों से निवेदन यह रहेगा कि मेरे लिस्ट में कई सारे हमारे मित्र कांग्रेस के या अन्य विचारधाराओं के मतावलंबी हो सकते हैं, मत पढ़िए इस लेख को कांग्रेसी और भाजपाई या अन्य किसी दल या विचारधारा के चश्मों से, लेकिन कही कुछ सही हो रहा है, उसे सही कहे और गलत हो रहा है तो उसे जरूर गलत बोले, यह राष्ट्रनिर्माण के प्रक्रियों में से एक प्रक्रिया है और जनतांत्रिक व्यवस्था का सौदर्य भी है.
"मैं, नरेंद्र दामोदरदास मोदी, ईश्वर.........."
यह आदमी कल और एकबार प्रधानमंत्री बनने जा रहा है !
जब सारी की सारी दुनिया ऐशो आराम के पीछे लगी है, पिछले कई सालों में ऐसा माहौल बना दिया गया देश का की उस माहौल में उस मनुष्य का दम घुट जाता है जिसका आकलन उसके चरित्र, कर्म और बुद्धि से नही तो उसके पास कितना पैसा?, कौनसी गाड़ी?, कितनी बड़ी कोठी? और तो और वह भ्रष्टाचार से कितने कमाता है?, यह सब आयाम आज समाज ने मनुष्य पर लगा दिए है.
यह सब मानो समाज के डायमेंशन बन गए हैं, इसमे देश, धर्म और समाज यह "राष्ट्रनिर्माण के लिए आवश्यक त्रिसूत्री" कही नही आते.
लेकिन यह हमारी भारतीय परंपरा नही रही है. हम तो एक ऐसे व्यवस्था या कहे समाज का हिस्सा रहे हैं जो एकदूसरे के जीवनयापन के लिए पूरक व्यवस्था का निरंतर निर्माण कर रहा होता है.
आज भी महाराष्ट्र में जब मेरी शादी 2000 साल में हुई तब तक लड़केवाले या लड़कीवाले कितने पैसेवाले हैं यह देखने के पहले हम यह पूछते हैं कि खानदान कैसा है?
यहाँ एक बात खास है कि वह सबसे पहले खानदान पूछ रहे हैं, नाकि उसकी दौलत.
बीच के समय में कुछ ऐसी हवा खराब हो गयी कि समाज के सारे के सारे आयामो का मापन पैसे से ही होने लगा.
उसमे पैसे की कीमत तो बढ़ गयी लेकिन मनुष्य की कीमत कम हो गयी.
उन कम कीमतवाले निर्लज्ज लोगों को भ्रष्टाचारीयों, कुकर्मियों, दंभियो, अनाचारियों और जिनको पैसा कमाने की लालच ने अंधा बना दिया है, ऐसे लोगों के साथ रिश्ते बनाने में कोई शर्म नही आने लगी और समाज का चित्र और चरित्र ऐसा बन गया कि किसी बहु को पूछो, "आपके ससुर क्या करते हैं?" तो वह बेझिझक उत्तर देती है कि, "वह भ्रष्टाचार के मामले में जेल में है."
किसी समय बेरोजगारी से झुझते हुए किसी पुराने मित्र को अचानक उसके अर्थकारण में आई तब्दीली के बारे में पूछिए तो वह बड़ी ही सहजता से उत्तर देता है कि, "भाई साहब फलाने मंत्री का पी ए हु, या फलाने मंत्री जी के साथ रहता हूं." यानी उसको पता है कि आपको पता चल गया है कि यह दौलत कैसे कमाई, फिर भी बताने में कोई शर्म नही कोई झिझक नही.
इसका मतलब यह हुआ कि देश में भ्रष्टाचार ने शिष्टाचार की जगह ले ली और देश सामाजिक अराजकता की ओर धीरे धीरे अग्रेसर हो रहा है.
अब... इतने खराब सामाजिक माहौल में...
यह फटा पड़दा औऱ प्लास्टर निकला हुआ कमरा है जिसमे एक वृद्ध महिला बैठी है, वह और कोई नही, इस भारतवर्ष के प्रचंड जनाधारवाले नेता नरेंद्र मोदी जी, जो कल इस भारतवर्ष के और एक बार प्रधानमंत्री बनेंगे, उनकी माँ है.
यह कोई सामान्य महिला नही है, देश के कुछ एक लोकप्रिय लोगों में से एक मनुष्य की माँ है वह.
प्रधानमंत्री अगर चाहे की जहा भी वह रह रही है वहाँ पर 50 मंजिला इमारत बन जाए तो भी वह बहुत कम समय में बन जाएगी.
क्या उनकी कोई ख्वाहिशें नही होगी?
उनको नही लगता होगा कि मेरी माँ मेरे पास सेंट्रलाइज्ड एअरकंडीशन घर में रहे?
क्या उनको नही लगता होगा कि उनके भी रिश्तेदारों को वैसा ही पैसा और दौलत मिले जैसे गांधी खानदान के रिश्तेदारों और कार्यकर्ताओं ने देश को लूटकर बनाई?
मानवी स्वभाव है यह सब मानव को ही लगता है.
लेकिन इस स्वभाव के मनुष्य वह होते हैं जो साधारण श्रेणी में आते हैं, जिनके जीवन का लक्ष्य ही पैसा होता है, जिसके चलते वह मानवता को दफना चुके होते हैं, रिश्तों को भूल गए होते हैं, जिनको लगता है कि यह ऐश, आराम और यह दौलत ही जिंदगी है, इसके अलावा जिंदगी नाम की कोई वस्तु ही नही है.
शायद ऐसे लोगों के मन में यह सब ऊपर चर्चित प्रश्न उठते रहते हैं और इसी कारण वह धीरे धीरे भ्रष्टाचार में लिप्त होते होते, एक समय ऐसा आता है कि उनकी जिंदगी भ्रष्टाचार का एक हिस्सा बन जाती है, यानी सारा का सारा जीवन ही भ्रष्ट हो जाता है.
नेताजी अलग पैसे कमाते हैं, उनकी बीवी अलग से पैसे कमाती है, बहु अलग से, बेटा अलग, बेटी अलग, यहाँ तक कि घर के नोकरचाकर भी अपना अलग से कमा लेते हैं.
सारी की सारी धनगंगा इनके घर में बहती रहे ऐसी इनकी अवधारणा बन जाती है. यह सब आदते नेताओ को पिछले कुछ सालों में लग चुकी है.
फिर यह सब चीजें नरेंद्र दामोदरदास मोदी को क्यो नही भाती?
इसका कारण यह है कि जिस मनुष्य के जीवन के लक्ष्य महान होते हैं वह ऊपर दी गयी छोटी छोटी बातों पर ध्यान नही देते. जिन्होंने अपने जीवन मे "देश, धर्म और समाज" यह "त्रिसूत्री" को अपनाया है, वह मनुष्य कभी भी भ्रष्टाचार में लिप्त नही रहेगा. वह कभी सोच भी नही सकता की उनका भाई या कोई रिश्तेदार उनके पद की वजह लाभान्वित हो औऱ जो संस्कार और स्वभाव परिवार का है उससे यह समझ में आता है की इसतरह की कोई ललक उस मोदी परिवार के किसी सदस्य के मन भी नही होगी.
अपने गत पाँच वर्ष की कार्यकाल में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने बहुत सारी नई नई चीजें इस देश को दी कुछ आर्थिक और कुछ सामाजिक भी.
सामाजिक चीजों में सबसे बड़ा काम नरेंद्र मोदी जी का यह रहा कि उन्होंने स्वच्छता मिशन को अपनाया.
आज हम देखते हैं कि बच्चे भी घर में कूड़ा नहीं फेकते, पेपर के टुकड़े नहीं फेकते, वह अपने जेब में डाल लेते हैं और जब भी वह बाहर जाते हैं वह फेंक कर आते हैं.
यह परिणाम क्यों हुआ क्योंकि प्रधानमंत्री को अपनी हर कृती में से देश को संदेश देने की आदत है और यह काम वह बखूबी कर लेते है.
शायद उन्होंने सारे सांसदों को पहले ही सख्ती से बता दिया है की-
"भ्रष्टाचार की कोई एक भी शिकायत मेरे पास नही आनी चाहिए."
इससे स्वच्छ संदेश भ्रष्टाचार की मंशा से सांसद बने उन सांसदों को दे दिया है की वह अपनी पुरानी आदते बदले.
भारतवर्ष के कल होने जा रहे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी का सबसे पहला काम यह होगा की वह सबसे पहले अपनो को सुधारे, औऱ भाजपा में अगर किसी को यह भ्रष्टाचार की बीमारी गलती से भी है तो उस बीमारी से तुरंत राहत पा ले क्योकि एक सशक्त राष्ट्रनिर्माण के लिए वह सभी प्रकार के रोगों से मुक्त होना चाहिए.
इस चित्र को देखकर यही मन में आता है की क्या संदेश देना चाहते है मोदी जी?
शायद यही एक बड़ा सवाल हम आपके लिए अनुत्तरित छोड़ जा रहे है, जिसके जवाब लाजवाब होने चाहिए.
धन्यवाद !
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