Wednesday, May 29, 2019

मैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी ईश्वर...

सभी मित्रों से निवेदन यह रहेगा कि मेरे लिस्ट में कई सारे हमारे मित्र कांग्रेस के या अन्य विचारधाराओं के मतावलंबी हो सकते हैं, मत पढ़िए इस लेख को कांग्रेसी और भाजपाई या अन्य किसी दल या विचारधारा के चश्मों से, लेकिन कही कुछ सही हो रहा है, उसे सही कहे और गलत हो रहा है तो उसे जरूर गलत बोले, यह राष्ट्रनिर्माण के प्रक्रियों में से एक प्रक्रिया है और जनतांत्रिक व्यवस्था का सौदर्य भी है.
"मैं, नरेंद्र दामोदरदास मोदी, ईश्वर.........."
यह आदमी कल और एकबार प्रधानमंत्री बनने जा रहा है !
जब सारी की सारी दुनिया ऐशो आराम के पीछे लगी है, पिछले कई सालों में ऐसा माहौल बना दिया गया देश का की उस माहौल में उस मनुष्य का दम घुट जाता है जिसका आकलन उसके चरित्र, कर्म और बुद्धि से नही तो उसके पास कितना पैसा?, कौनसी गाड़ी?, कितनी बड़ी कोठी? और तो और वह भ्रष्टाचार से कितने कमाता है?, यह सब आयाम आज समाज ने मनुष्य पर लगा दिए है.
यह सब मानो समाज के डायमेंशन बन गए हैं, इसमे देश, धर्म और समाज यह  "राष्ट्रनिर्माण के लिए आवश्यक त्रिसूत्री" कही नही आते.
लेकिन यह हमारी भारतीय परंपरा नही रही है. हम तो एक ऐसे व्यवस्था या कहे समाज का हिस्सा रहे हैं जो एकदूसरे के जीवनयापन के लिए पूरक व्यवस्था का निरंतर निर्माण कर रहा होता है.
आज भी महाराष्ट्र में जब मेरी शादी 2000 साल में हुई तब तक लड़केवाले या लड़कीवाले कितने पैसेवाले हैं यह देखने के पहले हम यह पूछते हैं कि खानदान कैसा है?
यहाँ एक बात खास है कि वह सबसे पहले खानदान पूछ रहे हैं, नाकि उसकी दौलत.
बीच के समय में कुछ ऐसी हवा खराब हो गयी कि समाज के सारे के सारे आयामो का मापन पैसे से ही होने लगा.
उसमे पैसे की कीमत तो बढ़ गयी लेकिन मनुष्य की कीमत कम हो गयी.
उन कम कीमतवाले निर्लज्ज लोगों को भ्रष्टाचारीयों, कुकर्मियों, दंभियो, अनाचारियों और जिनको पैसा कमाने की लालच ने अंधा बना दिया है, ऐसे लोगों के साथ रिश्ते बनाने में कोई शर्म नही आने लगी और समाज का चित्र और चरित्र ऐसा बन गया कि किसी बहु को पूछो, "आपके ससुर क्या करते हैं?" तो वह बेझिझक उत्तर देती है कि, "वह भ्रष्टाचार के मामले में जेल में है."
किसी समय बेरोजगारी से झुझते हुए किसी पुराने मित्र को अचानक उसके अर्थकारण में आई तब्दीली के बारे में पूछिए तो वह बड़ी ही सहजता से उत्तर देता है कि, "भाई साहब फलाने मंत्री का पी ए हु, या फलाने मंत्री जी के साथ रहता हूं." यानी उसको पता है कि आपको पता चल गया है कि यह दौलत कैसे कमाई, फिर भी बताने में कोई शर्म नही कोई झिझक नही.
इसका मतलब यह हुआ कि देश में भ्रष्टाचार ने शिष्टाचार की जगह ले ली और देश सामाजिक अराजकता की ओर धीरे धीरे अग्रेसर हो रहा है.
अब... इतने खराब सामाजिक माहौल में...
यह  फटा पड़दा औऱ प्लास्टर निकला हुआ कमरा है जिसमे एक वृद्ध महिला बैठी है, वह और कोई नही, इस भारतवर्ष के प्रचंड जनाधारवाले नेता नरेंद्र मोदी जी, जो कल इस भारतवर्ष के और एक बार प्रधानमंत्री बनेंगे, उनकी माँ है.
यह कोई सामान्य महिला नही है, देश के कुछ एक लोकप्रिय लोगों में से एक मनुष्य की माँ है वह.
प्रधानमंत्री अगर चाहे की जहा भी वह रह रही है वहाँ पर 50 मंजिला इमारत बन जाए तो भी वह बहुत कम समय में बन जाएगी.
क्या उनकी कोई ख्वाहिशें नही होगी?
उनको नही लगता होगा कि मेरी माँ मेरे पास सेंट्रलाइज्ड एअरकंडीशन घर में रहे?
क्या उनको नही लगता होगा कि उनके भी रिश्तेदारों को वैसा ही पैसा और दौलत मिले जैसे गांधी खानदान के रिश्तेदारों और कार्यकर्ताओं ने देश को लूटकर बनाई?
मानवी स्वभाव है यह सब मानव को ही लगता है.
लेकिन इस स्वभाव के मनुष्य वह होते हैं जो साधारण श्रेणी में आते हैं, जिनके जीवन का लक्ष्य ही पैसा होता है, जिसके चलते वह मानवता को दफना चुके होते हैं, रिश्तों को भूल गए होते हैं, जिनको लगता है कि यह ऐश, आराम और यह दौलत ही जिंदगी है, इसके अलावा जिंदगी नाम की कोई वस्तु ही नही है.
शायद ऐसे लोगों के मन में यह सब ऊपर चर्चित प्रश्न उठते रहते हैं और इसी कारण वह धीरे धीरे भ्रष्टाचार में लिप्त होते होते, एक समय ऐसा आता है कि उनकी जिंदगी भ्रष्टाचार का एक हिस्सा बन जाती है, यानी सारा का सारा जीवन ही भ्रष्ट हो जाता है.
नेताजी अलग पैसे कमाते हैं, उनकी बीवी अलग से पैसे कमाती है, बहु अलग से, बेटा अलग, बेटी अलग, यहाँ तक कि घर के नोकरचाकर भी अपना अलग से कमा लेते हैं.
सारी की सारी धनगंगा इनके घर में बहती रहे ऐसी इनकी अवधारणा बन जाती है. यह सब आदते नेताओ को पिछले कुछ सालों में लग चुकी है.
फिर यह सब चीजें नरेंद्र दामोदरदास मोदी को क्यो नही भाती?
इसका कारण यह है कि जिस मनुष्य के जीवन के लक्ष्य महान होते हैं वह ऊपर दी गयी छोटी छोटी बातों पर ध्यान नही देते. जिन्होंने अपने जीवन मे "देश, धर्म और समाज" यह "त्रिसूत्री" को अपनाया है, वह मनुष्य कभी भी भ्रष्टाचार में लिप्त नही रहेगा. वह कभी सोच भी नही सकता की उनका भाई या कोई रिश्तेदार उनके पद की वजह लाभान्वित हो औऱ जो संस्कार और स्वभाव परिवार का है उससे यह समझ में आता है की इसतरह की कोई ललक उस मोदी परिवार के किसी सदस्य के मन भी नही होगी.
अपने गत पाँच वर्ष की कार्यकाल में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने बहुत सारी नई नई चीजें इस देश को दी कुछ आर्थिक और कुछ सामाजिक भी.
सामाजिक चीजों में सबसे बड़ा काम नरेंद्र मोदी जी का यह रहा कि उन्होंने स्वच्छता मिशन को अपनाया.
आज हम देखते हैं कि बच्चे भी घर में कूड़ा नहीं फेकते, पेपर के टुकड़े नहीं फेकते, वह अपने जेब में डाल लेते हैं और जब भी वह बाहर जाते हैं वह फेंक कर आते हैं.
यह परिणाम क्यों हुआ क्योंकि प्रधानमंत्री को अपनी हर कृती में से देश को संदेश देने की आदत है और यह काम वह बखूबी कर लेते है.
शायद उन्होंने सारे सांसदों को पहले ही सख्ती से बता दिया है की-
"भ्रष्टाचार की कोई एक भी शिकायत मेरे पास नही आनी चाहिए."
इससे स्वच्छ संदेश भ्रष्टाचार की मंशा से सांसद बने उन सांसदों को दे दिया है की वह अपनी पुरानी आदते बदले.
भारतवर्ष के कल होने जा रहे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी का सबसे पहला काम यह होगा की वह सबसे पहले अपनो को सुधारे, औऱ भाजपा में अगर किसी को यह भ्रष्टाचार की बीमारी गलती से भी है तो उस बीमारी से तुरंत राहत पा ले क्योकि एक सशक्त राष्ट्रनिर्माण के लिए वह सभी प्रकार के रोगों से मुक्त होना चाहिए.
इस चित्र को देखकर यही मन में आता है की क्या संदेश देना चाहते है मोदी जी?
शायद यही एक बड़ा सवाल हम आपके लिए अनुत्तरित छोड़ जा रहे है, जिसके जवाब लाजवाब होने चाहिए.
धन्यवाद !
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Wednesday, November 28, 2012

Sardar Patel National Cooperative Lifelines


Comprehensive Development Vision for Gurjar Community

NDG Gurjar Patil
Jyoti Gurjar Patil
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मुझे क्षमा करना
निज भवन संसय दवन श्रीरघुपतीही यह मत भायहू, यह चरीत कलीमलहर जथामती दास तुलसी गायहू श्रीरामचरीतमानस, श्रीरामायण के सुन्दरकांड के अंत में श्रीराम प्रभु के चरीत्र का गायन करते हुए श्री तुलसीदास ने यह कहा है की परमात्माने मुझे जो बुद्धी प्रदान की उसी के आधारपर मैने श्रीराम के चरीत्र का गायन किया है, वरना मैं कोइ बुद्दीमान प्राणी नही हु। उसी प्रकार गुर्जर समाज जैसी देवजाती के विकास के बारे में लिख सकू इतना मै बिल्कुल भी बुद्दीमान नही हु, लेकिन, ह्रदयस्थीत परमात्मा ने जो भी लिखने को बोला वह हाथों के जरीये लेखनी से लिखा गया है, इसमें मेरी बुद्धी का कोइ संबंधभी है ऐसा मुझे नही लगता। मै शायद बुद्धीमान नही हु लेकीन खुद को आज भाग्यवान जरुर समझता हू की परमात्मा नें इस कार्य को करने के किए मुझे अवसर प्रदान कीया है। असल मे मै मूढ़मती हू और इतनाभी मेरा अनुभव या शिक्षण नहीं है जो किसी जाती समुदाय के विकास की योजना बना सकू, पैसे को ज्यादा समझ सकू, ना ही मैंने ऐसी कुछ शिक्षा प्राप्त की है जिसमे व्यापारशास्त्र का अंतर्भाव हो.  लेकिन बचपन से लेकर आज तक समाज के प्रति जो लगाव है, जीवन में मेरे जाती में एकता के आभाववंश जो भी सहना पड़ा है, और उसमे से जो पीडाए उत्पन्न हुई, उसीका नतीजा शायद यह विकास योजना है.
इस विकास योजना को अंजाम देते समय हमने व्यापारिक तरीके से कम सोचा है और समाजहित की भावनाओं को ज्यादा महत्व दिया है, इसलिए व्यापारिक तरीकेसे और व्यावहारिक तरीकेसे सोचने वाले महानुभाव शायद हमें गलत साबित कर सकते है, लेकिन यह समाज के लिए चलाया गया अभियान है, यहाँ मुनाफेखोरी को कम और समाजहित को ज्यादा महत्व दिया है. भावनावंश, हो सकता है की हमने कही ऐसा भी सोच लिया हो जो की व्यवहार के दायरे में बैठता न हो, लेकिन जब हम शुरुवात करेंगे तो आज की कठिन समस्या कल सहज होती दिखायी देगी, इसके उपरांत फिर भी आप को ऐसा लगता है की जो भी चीज हमने समाज के सामने रखी है वह सरासर गलत है तो कृपया हमें आप के सुझाव भेजकर उपकृत करें, आपके यही सुझाव हमें और अच्छी प्रेरणाए देंगे और उतनाही समाज का भविष्य उज्वल बनाने में मदद होगी. अंग्रेजी और हिंदी भाषाए मुझे अच्छी तरह अवगत नहीं है क्योंकि मै एक गरीब किसान का बच्चा हू और देहात में ही मेरा जन्म हुआ और वही पर पला बड़ा हुआ हू. इसलिए गाँव की संस्कृति को अच्छी तरह जनता हू और गर्व से कहता हू की गुर्जरी भाषा मुझे अच्छी अवगत है. इसलिए इस विकास योजना के दरमियाँ भाषा को लेकर गलतियाँ मुझसे संभवतः हुई होगीexc ही, अगर गलती है तो शब्द का अर्थ न ध्यान में लेतेहुए मुझे क्या कहना है यह ध्यान में ले और उन संभाव्य गलतियों के लिए मुझे अपना छोटा बच्चा समझकर माफ कर दे.

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Saturday, August 21, 2010

महात्मा गांधींचा भारतीयां ना तिटकारा का वाटावा.


मी एका प्रसिद्द सोसीअल नेटवर्क (www.facebook.com) वर नेहमी ब्लॉग लिहित असतो काल मी सहज महात्मा गाँधी यांच्या बद्दल लिहिले, नाही त्यांचा फक्त फोटो लावला मी माझ्या प्रोफाइल मध्ये तर आपल्या भारतीय लोकानना कोण जाने कायवाटले मला चक्क १५ ते २० कमेंट्स तेहि अगदी विखारी ऐकायला माफ़ करा पहायला मिळाले। अरे माझ्या भारतीय मित्रनानो या देशात महात्मा गाँधी एवढे घृणा पात्र कधी पासून झालेत? या देशासाठी ज्यांनी आपल्या सर्वस्वाचा त्याग केला, जय महात्म्याच्या स्मृति साठी दक्षिण आफ्रिकेत त्याचे पुतले उभारले जातात त्यांना आपण अशी वागणूक द्यावी हे पाहून मला आश्च्यार्या च धक्काच बसला. या देशाची ओळख महात्मा गाँधी आहेत हे आपण विसरून चालणार नाही। आपण दुसर्यावर सहज टीका करतो तो आपल्या लोकांचा स्वाभाव आहेच, पण टीका करतांना आपण हे लक्ष्यात ठेवणे गरजेचे आहे की तीन बोते ही आपना कडेच आहेत.

Friday, February 6, 2009

Reality of Indian Rural Education Drive

Narayani Foundation, an Non Government Organisation, NGO, especially working in the field of World Class Education for the poors. This NGO is working not in urban areas but in rural & remote areas to cater education to those who do not have access to world class knowledge & hence education. In India eve though Government is telling that they have achieved milestones in rural education, but fact is that they didnt. Whatever they are telling, they are telling this on the basis of the figures they ahve received from different reports provided by Headmasters, Education Officers, State secretaries... etc..
But the fact is different.....
The fact is that there is no proved system of governance to keep control over the attendance of the primary teachers working on paper in rural India to provide free education to the poors. I myself have travelled through the rural areas for different times, the teachers are such that they decide themselves to attend school in day exchange basis. Suppose they are fours then one will come on monday, second will come on tuesday, another will come on wednesday....etc only one teacher remain present & maintains entire school all the day.
This is not fair.......